शुक्रवार, 11 सितंबर 2009

एक सफर


यात्री अपने सामानों की सुरक्षा स्वंय करें और यात्री अपनी सुरक्षा भी स्वंय करें.... पहला मजमून आपको देश के लगभग सभी रेलवे स्टेशनों में देखने मिल जाएगा। दूसरा मजमून शायद आपको ट्रेन में चढ़ने के बाद मालूम हो जाएगा। रेलवे अपने यात्रियों की सुरक्षा के जितने भी दावे कर ले लेकिन हकीकत यही है कि यात्रियों को अपनी सुरक्षा स्वंय ही करनी होगी।
रेलवे द्वारा ट्रेनों में यात्रियों की सुरक्षा के लिए रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स तैनात करती है। आरपीएफ के जवान ट्रेन के सभी डिब्बे में गश्त लगाकर यात्रियों का सुरक्षा सुनिश्चित करतें हैं। झारखण्ड के टाटानगर से उड़ीसा के राउरकेला के बीच कुछ जवानों की ड्यूटी लगाई जाती है। यह स्टेशन हावड़ा मुंबई रेलमार्ग में आती है। इन दोनों स्टेशन के बीच में चक्रधरपुर स्टेशन है जो रेलवे का डिवीजन है। 3 सितंबर की रात का वाक्या है। हरिद्वार पुरी कलिंग उत्कल एक्सप्रेस सही समय शाम 6:45 बजे चक्रधरपुर पहुंची। उस ट्रेन में आरपीएफ के छह जवान अपनी ड्यूटी लगाने पहुंचे। वे सभी एक स्लीपर कोच में खाली जगह देखकर बैठ गए। जवानों को अपनी ड्यूटी बजानी थी। जवान तीन – तीन कर आमने सामने बैठ गए। यहां से आरपीएफ के जवानों की ड्यूटी शुरू होती है। एक जवान अपने और अपने साथी जवान के राइफल को दोनों सीट पर रखता है। उसके बाद दोनों राइफल के उपर पुलिस की विशेष पहचान गमछा (अधिकतर पुलिस अपने गले में गमछा रखते हैं) रख देता है। जिससे एक प्लेटफार्म तैयार हो जाए। अब सभी जवान अपनी भूमिका में आते हैं। बोली लगनी शुरू होती है। एक जवान 16 से बोली शुरू करता है। यह बोली 22 में जाकर खत्म होती है। आपको शायद यह जानकर आश्चर्य नहीं होगा यह बोली ताश के संबंधित एक खेल का था। आपरपीएफ के सभी जवान अपने ड्यूटी का कीमती समय जुआ खेलने में लगा रहे थे। 

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