बुधवार, 6 मई 2009

मजा तो तब आयेगा जब...



मिश्राजी के नाम से शायद ही कोई परिचित न हो। मिश्राजी वो हैं जो जमीन को आसमान और आसमान को जमीन पर उतार दें। मिश्राजी वो हैं जो हाथी को चूहा और चूहा को हाथी बना दें। मिश्राजी वो हैं जो बिहार को दिल्ली और दिल्ली को बिहार बना दें। एक मिश्राजी मेरे भी मित्र हैं तारीफ बहुत हो गयी अब सीधे मिश्राजी के मुख्य मुद्दे पर आता हूं।
मिश्राजी की ज़ुबान पर हमेशा एक ही जुमला रहता है – मज़ा तो तब आयेगा जब....
हमेशा की तरह मिश्राजी ज़ुमला भी बीचे में रोक देते थे और सब का ध्यान दूसरी तरफ ले जाते थे। एक दिन मैं मिश्राजी की इस चालाकी को पकड़ लिया और पूछा – मिश्राजी इ का आप हमेशा बोलते रहते हैं कि मज़ा तो तब आयेगा जब । आप बतवा को अधूरा काहे छोड़ देते हैं बोलना है तो पूरा बोलिये। मिश्राजी मुझे खा जाने वाली नज़रों से घूरे और हमेशा की तरह बोले – का बोले हम, हम बोले लायक हैं तू लोग ना बोलेगा। तब मिश्रा जी को अपनी जमात ( गंगा ढाबा में हम सभी की बैठकी ) से अलग ले जाकर मैं पूछा बताईये ना मिश्राजी उ बतवा जो आप हमेशा बोलते रहते हैं कि मज़ा तो तब आयेगा जब ...
उस दिन मिश्राजी ने पटना में घटी एक घटना से अवगत कराया। जो बहुत ही हास्यप्रद लगा लेकिन वास्तव में यह शब्द बहुत कुछ कह जाता है। मिश्राजी ने अपने शब्दों में जो बयान किया उसे यहां दुहराने की कोशिश कर रहा हूं। मिश्राजी से मेरा आग्रह है कि आप इसे अन्यथा ना लें।
एक दिन पटना के गोलघर के सामने से हम जा रहे थे। वहां का दिखता है, वहां दिखता है कि ए गो आदमी, ए गो आदमी ज़मीन में, ए गो चद्दर बिछा दिया है। और बोल - बोल के भीड़ जुटा रहा है। अरे भीड़ जुटेगा तबे ना उ अपना तमाशा दिखायेगा। भीड़े ना रहेगा तो तमशवा के देखेगा। उ अपना डब्बा ( ढोल ) पीट - पीट के पांचे मिनट में बहुते भीड़ जुटा लिया। और सब कौतुहल वश सामने बिछा चद्दरवा देखने लगा। हम भी पहुंच गये तमाशा देखने। उ आदमी बार - बार एके गो बतिया बोल रहा था कि मज़ा तो तब आयेगा जब... हम भी नहीं समझे कि इ भीड़ जुटा के का मज़ा दिखावे वाला है। फिर पंद्रह मिनट बाद देखते हैं कि जमीन में बिछल चद्दर उपर उठने लगा। चद्दर को उपर उठते देख सभी भौंचक हो गये। अब हम आपको बता दें कि पटना शहर में आसपास से बहुते लड़का पढ़े आता है। कुछ साइंस का, कुछ आर्टस् का, तो कुछ कामर्स का। अब मज़ा तो इ आया कि साइंस वाला लड़कवन सोचे लगा कि जरुर इ नीचे में ए गो पाईप फीट किया होगा जिससे हवा निकलता होगा और चदरिया को उपर उठा रहा है। लेकिन असल तो किसी को पता नहीं ना। अरे पता चल जायेगा तो मज़ा कैसे आयेगा और उ गरीब अपना पेट कैसे भरेगा।
उ जो बोलता था ना - मज़ा तो तब आयेगा जब... चदरा मदरा लेकर उड़ेगा।
मिश्राजी ने रहस्योद्धाटन किया कि मज़ा तो तब आयेगा जब चदरा मदरा ले कर उड़ेगा। इस बात का मतलब मैं नहीं समझ सका और मैं पूछता रहा लेकिन मिश्राजी इसका मतलब नहीं बताये। मिश्राजी कहते रहे - देखते जाओ मज़ा तो तब आयेगा जब...। यह बात मुझे अब समझ में आयी। मैं आपको बताना नहीं चाहता लेकिन आप इस बात को समझ जायेंगे, क्यों मिश्राजी यह बात कहते रहते थे, मिश्राजी क्यों चूहा को हाथी बना देते थे। पत्रकारिता की पढ़ाई के बाद मिश्राजी ने एक अच्छा मुकाम हासिल किया। मिश्राजी का प्लेसमेंट बिज़नेस भास्कर में हो गया। कभी - कभी मैं मिश्राजी से गंगा ढाबा में मिलता हूं और उनकी बात को याद कर मुस्कुराता हूं।

1 टिप्पणी:

  1. आपने ये वो चीज़ लिख डाली है जो मिश्राजी और आपकी दोस्ती को अमर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
    .....अगर अन्य बातें समान रहें तो.....।

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