मंगलवार, 28 अप्रैल 2009

भूली बिसरी यादें...(भाग-१)

हेमेन्द्र मिश्र
इधर काफी दिनों से कुछ लिखने की सोच रहा था। कौशल भाई से बराबर लिखने को लेकर बात भी हो रही थी। लेकिन समय नहीं मिलने के कारण मैं यह नहीं कर सका। खैर, काम करने के दौरान ही अपना यह अनुभव लिख रहा हूं।
आईआईएमसी के नौ महीने कब गुजर गए पता ही नहीं चला। हमें इस बात का इल्म ही नहीं रहा कि हमने उस समय पत्रकारिता के मिशन को अपनाया जब मूल्क आर्थिक मंदी की चपेट में है। शायद इसी नासमझी में हमनें यह कभी नहीं सोचा कि संस्थान के बाहर की जिंदगी में हमें कई कठिनाईयों का सामना करना होगा। लेकिन कहते हैं कि जेठ की तपिश जितनी तेज होगी बरसात की उम्मीद उतनी ज्यादा होगी। इसी सूत्र वाक्य के साथ अमित और दिवाकर के साथ मैंने इंडिया न्यूज में कदम रखा। मन में यह आशा और विश्वास था कि देर-सवेर नौकरी की व्यवस्था तो हो ही जाएगी।
इंडिया न्यूज में काम करते हुए एक महीने होने को हैं। इस एक महीने हमने खासकर मैंने काफी कुछ सीखा। शुरुआती दो दिन छोड़ दें तो हमने यहां रात की शिफ्ट की है। हमारे शिफ्ट इंचार्ज राजीव जी हैं। भले मानस और एक नेक इंसान।ये हमलोगों को काफी सहयोग देते हैं। ठीक इसी तरह हमारे संस्थान के ही विवेक सत्य मित्रम जी भी यहीं हैं। स्क्रिप्ट लिखने की इनकी शैली लाजवाव है। प्रोफेशनल कॉपी लिखने में इन्हें महारथ हासिल है। प्राय: सभी की स्क्रिप्ट यही देखते हैं और सामान्यत: सभी की कॉपी दुबारा लिखते हैं। अपने काम के प्रति अगर आपको संजीदगी और संतुष्टी देखनी हो तो विवेक जी को देखकर समझा जा सकता है। इसी तरह अतुल जी और अमितेश जी भी रात की शिफ्ट में हैं, जिनके साथ काम करना एक सुखद अनुभव है।
इस अनुभव को पढ़ने के बाद आप सोच रहें होंगे कि आखिर हेमेन्द्र ने ऐसी यादों के साथ लिखने की शुरुआत क्यों की। तो मेरे दोस्तों शुरुआत हमेशा सकारात्मत बातों से होनी चाहिए। कोई भी परफेक्ट नहीं होता। सबने कुछ न कुछ कमियां होती है। लेकिन हमें उनकी कमियां नहीं बल्कि उनकी अच्छाइयों को अपनाना चाहिए। अभी यह परिचय है बाकी बातें तो होती ही रहेगी......

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